राजकपूर-नर्गिस अभिनीत, नवोदित संगीतकार जोडी शंकर-जयकिशन के संगीत से सुसज्जित फिल्म बरसात का रिव्यू (पुनरावलोकन)

सभी आरके फिल्मों की तरह बरसात का शीर्षक संगीत (टाइटल म्यूज़िक), पृथ्वीराज कपूर द्वारा शिव पूजन से आरम्भ होता है। शीर्षक उभरने से पहले कुछ पलों के लिए बरसाती बादल दिखाई देते हैं तथा नेपथ्य में ढोल की हल्की सी आवाज़ आती है। गीत ‘बरसात में हमसे मिले तुम..’ के इंटरल्यूड की राग भैरवी पर आधारित अमर धुन से साथ परदे पर शीर्षक चलते हैं।

लेकिन शीर्षक संगीत क्या सिर्फ औपचारिकता निभाता है? नहीं, यह अपने आप में बहुत कुछ संजोए हुए है। एक ही धुन में राग भैरवी के दो बिल्कुल विपरीत भाव सुनाई देते हैं। शुरुआत में जहां श्रोता/दर्शक अपने आप को उत्सवी माहौल में पाता है, लेकिन जैसे ही वॉयलिनों से सर्जित धुन ठीक विपरीत मोड लेती है तो श्रोता/दर्शक के मन में उदासी घिर आती है।

और इस शुरुआती जादू के साथ ही तब इतिहास रचा जाता है जब अन्य नामों के साथ परदे पर पहली बार संगीतकार के रूप में दो नाम उभरते हैं, शंकर-जयकिशन। शीर्षक संगीत ही दर्शक के मन में शंकर-जयकिशन से कई अपेक्षाएं जगा देता है। और क्या उन्होंने अपेक्षाएं पूरी कीं? इसके विस्तार में जाने की कतई आवश्यकता नहीं है। आजभी दुनिया भर के संगीत प्रेमी बरसात फिल्म का कोई भी गीत सुनने का मौका नहीं गंवाते, भले ही वे उसे हज़ारों बार सुन चुके हों।













चलिए फिल्म की ओर रुख करें….

पहाडों में छुट्टी बिताने प्रेम (राजकपूर) एवं गोपाल (प्रेमनाथ) कार से रवाना होते हैं।

पहाडों, पेडों, झरनों, झीलों एवं तेज़ सर्द हवाओं की पृष्ठभूमि में एक पहाडी लडकी (अदाकारा-???) (actor ??) गाती है ‘हवा में उडता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का’. इस फिल्म के लिए लिखा गयारमेश शास्त्री का एकमात्र गाना उस वक्त भी सुपरहिट था तथा 60 वर्‍शों बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। ठंडी, तेज़ हवा में फडफडाते अदाकारा के दुपट्टॆ के साथ वॉयलिन तथा बांसुरी का उत्कृष्ट उपयोग ऊर्जावान तथा प्रफुल्लतापूर्ण पहाडी वातावरण को बखूबी चित्रित करता है। लता की आवाज़ झरनों के पानी की तरह ताज़ा है। गाने के ऑर्केस्ट्रा में हुस्नलाल-भगतराम की शैली के स्पष्ट झलक है, शंकर जिनके सहायक थे। वास्तव में एक इंटरल्यूड तो बिलकुल हुस्नलाल-भगतराम के गाने ‘तेरे नैनों ने चोरी किया’ की तरह है। दर्शक/श्रोता अपने आपको यह अन्दाज़ा लगाने से नहीं रोक पाता कि ‘तेरे नैनों ने चोरी किया’ के इंटरल्यूड की रचना में शंकर का काफी योगदान रहा होगा।

अपनी यात्रा के दौरान कार का इंजिन ठंडा करने के लिए प्राण और गोपाल कुछ देर के लिए रुकते हैं और पाप-पुण्य पर दार्शनिक चर्चा करते हैं। मनचला गोपाल प्राण से पूछता है, “यदि किसी बात को हमारे देश में पाप समझा जाता है, तो उसी को दूसरे देश में क्यों नहीं?” प्राण जवाब देता है, “किसी के दिल या मन को चोट ने पहुंचाना ही एकमात्र पुण्य है। केवल सच्चा प्यार ही पवित्र भावनाओं को जन्म देता है।“

वह गोपाल को उलाहना देता है कि वह जीवन में केवल सेक्स और भौतिक चीज़ों के पीछे भागता है। सेक्स के परिप्रेक्ष्य में गोपाल स्वीकार करता है कि उसका उसूल जब भूख लगे तब खाने का है। वह व्यंग्यपूर्वक प्राण से पूछता है कि पहाड की लडकियां वास्तव में किसी से प्यार करती हैं या सिर्फ पैसों के पीछे भागती हैं! प्राण पूरी शिद्दत के साथ कहता है, “कौन जाने, यहां कोई हो जो वास्तव में शहरी बाबू से सच्चा प्यार करती हो! और जो सच्चा प्यार नहीं करती हो, उसे प्यार के बजाय रोटी की अधिक फिक्र होगी।“ गोपाल व्यंग्यपूर्वक जोडता है, पिछले साल मैं जिस लडकी से मिला था उसने भी यही कहा था – वह सदा के लिए मेरा इंतज़ार करती रहेगी।

इस पृष्ठभूमि के साथ जैसे ही यह गाना ‘जिया बेक़रार है…’आता है, तो उसके साथ ही हिन्दी फिल्म जगत में तीन दिग्गजों का पदार्पण होता है। नीला (निम्मी, )शंकर की आधिकारिक रूप से जानी जाने वाली प्रथम धुन पर होंठ हिलाती है, जिसके लिए बोल लिखे थे हसरत जयपुरी ने (हालांकि पूर्व फिल्म आग के क्रेडिट्स में गानों की ट्यून बनाने का श्रेय शंकर-जयकिशन को भी दिया गया था)।
शंकर द्वारा इस्तेमाल किए गए डमी शब्दों ‘अम्बुवा का पेड है, वोही मुंडेर है, आजा मोरे बालमा, अब काहे को देर है’ की जगह पर हसरत ने बोल लिखे ‘जिया बेक़रार है, छायी बहार है, आजा मोरे बालमा, तेरा इंतज़ार है’। और इस नए गीतकार ने क्या उत्कृष्ट कार्य किया। बडी सरलता से उन्होंने गोपाल के संवाद को विस्तार देते हुए गीत में बदल दिया! इस गाने में भी हुस्नलाल-भगतराम की शैली की झलक स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। और लता ने इस गीत का गाया नहीं बल्कि अभिनीत किया है। इस गाने के फिल्म-ट्रैक संस्करण में मासूमियत तथा उलाहना महसूस करने के लिए किसी को संगीत का जानकार होना ज़रूरी नहीं है (यह प्रभाव एलपी रिकॉर्ड संस्करण में मौज़ूद नहीं है)। इस तेज़ गति के गीत में, जिसमें तानें तथा मुरकियां हैं तथा मुखडे व अंतरे के बीच समयांतर बहुत कम है, लता ने सांस पर गज़ब का नियंत्रण भी दर्शाया है।
वैसे अपने करियर के उत्तरार्ध में हसरत ने अधिकतर गाने जयकिशन की धुनों पर लिखे।

गाने की समाप्ति के साथ, गोपाल नीला से मिलने उसके घर पहुंचता है। वह बेहद प्रसन्न होते है और पृष्ठभूमि में द्रुत गति से बजता सितार उसके उल्लास तथा ह्रदय की बढी हुई धडकनों की स्थिति को सफलतापूर्वक उभारता है। मीठी-मीठी बातों के जाल में उलझाकर गोपाल नीला के साथ रात बिताता है। सुबह वह नीला को बताता है कि वह प्राण के साथ एक किराये के घर में रहने जा रहा है। वह नीला को झूठा भरोसा देता है कि लौटते समय वह उसे अपने साथ शहर ले जाएगा, तब तक बरसात शुरू हो जाएगी। नीला कहती है, “मैं नहीं जानती, तुम कि बरसात की बात कर रहे हो। तुम से दूर रहकर मेरी आंखों से तो हमेशा बरसात होती रहती है। मैंने क़सम खाई थी कि यदि तुम फिर से मेरे पास वापस आओगे तो मैं पूरी तरह से सज-धजकर भगवान की मूर्ति के सामने नाचूंगी। मैं तुम्हें रुकने के लिए इसलिए कह रही हूं कि यदि मेरे सामने मेरे भगवान (तुम) नहीं हो तो मैं कैसे नाच सकती हूं!“ गोपाल कहता है, “अच्चा तो ऐसी बात है! तो फिर कल सुबह ताक धिना धिन!”

‘बरसात में हमसे मिले तुम...’ गाने से एक और भव्य पदार्पण होता है, शैलेन्द्र, हिन्दी फिल्म जगत के सार्वकालिक महानतम् गीतकारों में से एक! गाना ढोल की थापों तथा मुख्यतः मैंडोलिन, पियानो, वॉयलिन एवं बांसुरी के साथ आरम्भ होता है। नृत्य निर्देशन बिल्कुल साधारण है तथा गहनों से सजी नीला समूह के साथ भगवान् शिव की मूर्ति के सामने नृत्य करती है तथा गोपाल व प्राण एक कोने में बैठकर नृत्य देखते हैं। गाने का दूसरा अंतरा ‘प्रीत ने सिंगार किया...’ नीला के मनोभावों को बखूबी चित्रित करता है: गोपल को भगवान् का दर्ज़ा देना, उल्लासित मन, पूर्ण समर्पण की भावना तथा यह मानना कि गोपल की भी उसके प्रति ऐसी ही भावनाएं हैं। और राग भैरवी में निबद्ध धुन इन भावों को सफलतापूर्वक उभारती है। पहला अंतरा समाप्त होने तक गोपाल बोर होकर, उठकर जाने लगता है। असहाय नीला उसे रोकने का असफल प्रयास करती है और इंटरल्यूड में राग भैरवी की धुन भी नाटकीय रूप से विपरीत मोड ले लेती है और दर्शक/श्रोता का मन उदासी से भरने में सफल होती है। दूसरे अंतरे की समाप्ति तक गोपल, प्राण को लेकर कार में बैठ जाता है। ’देर ना करना कहीं...’ के साथ राग भैरवी का उदास स्वरूप जारी रहता है। गाना समाप्त होने पर कार दूर दिखाई देती है.... गोपाल, नीला से दूर जा चुका है!

प्राण एवं गोपाल झील में स्थित घर के चौकीदार की बेटी रेशमा (नर्गिस) से मिलते हैं। रेशमा झील में गिर जाती है, उसे प्राण बचाता है और उसकी देखभाल करता है। दोनों के बीच प्यर की शुरुआत होने लगती है लेकिन दोनों में से किसी की एक-दूसरे से कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती। अगले दिन रेशमा फिर प्राण से मिलने आती है और उसे नाव की सवारी कराने ले जाती है। गोपाल, प्राण को पहाडी लडकी के प्यार में न पडने की चेतावनी देता है। लेकिन प्राण और रेशमा के बीच प्यार बढने लगता है। दृश्य तेज़ी से बदलते हैं और पृष्ठभूमि में द्रुत गति के वॉयलिनों की ध्वनि समय के तेज़ी से गुज़रने का एहसास बखूबी दिलाती है। इस बीच, नीला का उदास चेहरा अत्यंत सुन्दर प्रकाश-प्रभाव के साथ दिखाया जाता है और पहली बार पृष्ठभूमि में ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’

गोपाल क्लब जाता है जबकि प्राण घर पर ही रुक जाता है। वह गैलरी में आकर वॉयली बजाने लगता है। रेशमा उससे मिलने नाव में आती है और साथ में गुनगुनाती है। जब वह घर की नीची पहुंच जाती है तो गाना गाती है ‘ओ मुझे किसी से प्यार हो गया’। प्रील्यूड में आलाप तथा वॉयलीन एक-के-बाद-एक आते हैं जो कि रेशमा और प्राण के बीच पनप चुकी समझ तथा लगाव को दर्शाते हैं। लता द्वारा गाये गए शब्द ‘धडके जिया’ तथा ढोलक की थाप के अतिरिक्त खिंचाव पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। यह महसूस करना सचमुच अद्भुत है कि नए संगीतकार शंकर-जयकिशन ने कितनी खूबसूरती से रेशमा द्वारा प्यार का आनन्द लेने के भावों को संगीत से परिभाषित किया है।

प्राण तथा रेशमा नौकायन के लिए जाते हैं। लौटते समय वे एक झरने के पास उतर जाते हैं। प्राण की गोद में सिर रखकर रेशमा गाती है ‘मेरी आंखों में बस गया कोई रे’. यह गाना राग पहाडी में है। यह गाना एक निर्जन स्थान में फिल्माया गया है, जिसमें प्रकृति की सुन्दरता के साथ सिर्फ दो प्रेमी हैं और इंटरल्यूड्स में सिर्फ एक बांसुरी का उपयोग किया गया है!

गाने ‘पतली कमर है’ का प्रील्यूड आरम्भ होता है। यह फिल्म में सबसे लम्बा प्रील्यूड है। यदि कोई इस बात में यकीन रखता है कि दृश्य किसी रचनाकार की सर्जकता में वृद्धि कर सकते हैं तो इस गाने का विडीओ अवश्य देखें – आपको नौसिखिये राजकपूर की कल्पनाशीलता का परिचय मिलेगा। इस गाने का उद्देश्य था गोपाल तथा नीला की विरोधाभासी स्थितियों को दर्शाना। और क्या ‘बरसात’ की टीम इसमें कामयाब हुई? इधर नेपथ्य में बज रहे वॉयलिनों के साथ प्राण क्लब-डांसर (कुक्कू) के साथ क्लब में डांस करता है और उधर अकेली, निराश नीला की दशा नेपथ्य में अकेले बज रहे वाद्य (???) द्वारा बखूबी दर्शायी जाती है। दृश्य गोपाल-कुक्कू एवं नीला के बीच बार-बार दिखाई पडते हैं - और हां, ऑर्केस्ट्रा भी उसी तरह साथ-साथ विपरीत मोड लेता है। जब नीला ढोलक की थाप के साथ प्राण को आने के लिए पुकारती है ‘आजा मेरे मनचाहे बालम..’ तो साथ में अन्धेरे-उजाले के अद्भुत समन्वय के दृश्य दिखाई देते हैं। इसके लिए प्रकाश-प्रभाव निर्देशक को सलाम! और उन परिपक्व युवा शंकर जयकिशन को सलाम जिन्होंने बडी सरलता से अपनी पहली ही फिल्म में ऑर्केस्ट्रा को पाश्चात्य रंग और ढोलक से साथ विशुद्ध भारतीय रंग में एक ही गाने में संयोजित किया। लेकिन इससे भी गहरा प्रभाव गाने के अंत में आता है जब इधर कुक्कू गोपाल की बांहों में गिरती है और उधर नीला अपने घर में उसी समय बेहोश होकर गिर पडती है।
प्राण घर की गैलरी में वॉइलिन पर ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ बजाता है और रेशमा फिर उसके खयालों में खो जाती है। वह अपनी मां को बगैर सिकी रोटी परोस देती है जो समझ जाती है कि उसकी बेटी किस मनोदशा में है। वह रेशमा से कहती है कि उसके पिताजी बहुत जल्द लौटेंगे और उसकी शादी की बात पक्की कर देंगे। रेशमा सोचती है कि वह प्राण होगा और उसे यह बात बताने के लिए दौड पडती है। दोनों बाहर बगीचे में आते हैं, तभी उन्हें ‘दो पेडों के बीच काले बादलों की पृष्ठभूमि में बिजली चमकती दिखाई देती है’ रेशमा प्राण को इस भय के साथ गले लगा लेती है कि न जाने भविष्य के गर्भ में क्या बुरा छुपा हो!

इसी समय नीला को ‘प्रेमनगर में बसने वाले…’ गाते हुए दिखाया जाता है।

गंजू घर लौटता है। बर्तन धोते हुए रेशमा उसके माता-पिताअ की बातें सुनती है। मां पूछती है, ‘क्या तुमने शादी की बात पक्की कर दी है?’ गंजू कहता है, ‘हां! यह बहुत अच्छा प्रस्ताव है और में चिलम पीने के बाद तुम्हें सब कुछ बताऊंगा।‘ मानो चिलम पीना गंजू के लिए अपनी बेटी के भविष्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण था!

रात में प्राण जब अपने घर पर ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’’ के दर्द भरे सुर बजाता है तो रेशमा घर के मचान पर स्थित अपनी खाट पर बेचैन हो उठती है। वह नीचे उतरती है लेकिन गलती से गंजू के पैर को छू लेती है। घबराकर वह सफाई देती है कि वह पानी पीने के लिए नीचे उतरी थी। वह फिर ऊपर जाती है लेकिन बेचैनी से फिर बगैर आहट के नीचे उतरना चाहती है मगर धप्प की आवाज़ हो जाती है। गंजू चिढकर पूछता है, ‘अब क्या है?’ रेशमा कहती है कि बहुत ठंड है और उसने उसे (गंजू को) कम्बल ठीक से ओढाने का सोचा था। इसी बीच नेपथ्य में ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’’ के सुर जारी रहते हैं। अंततः रेशमा घर से बाहर निकल पडती है। गंजू जो सोने का नाटक कर रहा था, उसके पीछे-पीछे झील के किनारे आता है। नेपथ्य में ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ के सुर अचानक तेज़ गति के हो जाते हैं (मानसिक द्वन्द्व को दर्शाते हुए) .

रेशमा प्राण के घर पहुंचती है और आरके फिल्म्स् तथा भारतीय सिनेमा के इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं यादगार क्षण आता है. प्राण रेशमा को बाएं हाथ से थामता है जबकि दाएं हाथ में वॉइलिन है। हिन्दी फिल्मों में रोमांस को पहला पहचान चिन्ह मिल चुका है! यह दृश्य आरके फिल्म्स् के पहचान चिन्ह (लोगो) के रूप में भी परिवर्तित हो गया।.

जब रेशमा घर लौटती है तो गंजू झील के किनारे राह देख रहा होता है तथा उसे देखकर बहुत नाराज़ होकर कहता है, ‘गरीब का धन केवल उसकी इज़्ज़त होती है। तुम्हारी शादी की बात गांव में पक्की हो चुकी है। इस घर में (जिसमें प्राण ठहरा था) कई बाबू कुछ दिनों तक ठहरे हैं और लौटकर वापस नहीं आए हैं।‘ उसके बाद वह नाव की रस्से खोल देता है (या प्राण-रेशमा का रिश्ता?) रेशमा सोहनी (सोहनी-महिवाल) कि नियति का अनुसरण करने के लिए संकल्पित है। वह किनारे पर लौटने का कोई प्रयास नहीं करती। ग़ंजू गुस्से से चिल्लाते हुए रस्सी काट देता है और रेशमा तेज़ धार में बह जाती है। गंजू प्राण तथा गोपाल को किराया लौटाकर घर तुरंत खाली करने के लिए कहता है। वे दोनों एक दूसरे घर में चले जाते हैं।

इधर रेशमा बहते-बहते मीलों दूर नदी के एक किनारे पर पहुंच जाती है। भोलू (के.एन.सिंह) मछली पकडते हुए उसे बेसुध पडा हुआ पाता है और एक ज़िन्दा खूबसूरत लडकी को देखकर बेहद खुश हो जाता है। वह उसकी पूरी तीमारदारी करता है और एक वैद्य की मदद से उसे एकदम ठीक कर देता उधर प्राण बेहद ग़मगीन है। नेपथ्य में गाना ‘मैं ज़िन्दगी में हरदम रोता ही रहा हूं...’ बजता है तथा इस पर प्राण ने होंठ नहीं हिलाए हैं। शायद यही कारण था कि इस गाने के लिए मुकेश की बजाय रफी साहब की आवाज़ ली गई।

रेशमा कुछ बेहतर महसूस करने पर चुपचाप बाहर सडक पर निकल पडती है और हर आती-जाती गाडी को देखकर प्राण के लिए पुकारती है, ‘बाबूजी! मैं यहां हूं।‘ लेकिन वह निराश ही होती है। एक व्यक्ति ग़लत इरादे से उसे बहकाकर ले जाना चाहता है लेकिन भोलू सहि वक़्त पर पहुंचकर रेशमा को रोक लेता है, अपने घर वापस ले जाकर, धमकाकर उसे झोपडी में बन्द कर बाहर से ताला जड देता है।

दु:खी रेशमा गाती है ‘अब मेरा कौन सहारा’ गाना खत्म होते समय प्राण ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’’ फिर से बजाता दिखाई देता है, लेकिन इस बार पियानो पर

भोलू रेशमा से शादी करना चाहता है और शादी की तैयारियों के लिए उसे शहर के बाज़ार ले जाने की तैयारी करता है।

प्राण एवं गोपाल क्लब जाते हैं। ऑर्केस्ट्रा में एक वादक वॉइलिन पर ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ बजाता है जिससे प्राण अत्यंत विचलित हो उठता है। सन्योग से उसी समय भोलू रेशमा के साथ क्लब के पास ही एक दुकान पर चूडियां खरीदने आता है। जैसे जोडे क्लब में ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ की धुन पर नृत्य करते हैं, रेशमा समझती है कि उसके बाबूजी (प्राण) वहां हैं और वह क्लब की ओर दौड पडती है। लेकिन जब तक वह वहां पहुंचती है, प्राण और गोपाल जा चुके होते हैं! भोलू भी पीछे-पीछे पहुंचता है और रेशमा को घसीटकर क्लब से अपने गांव ले जाता है।

अपने घर पहुंचकर प्राण पियनो पर ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ बजाने लगता है, और गाना शुरू होता है, ‘छोड गए बालम...’ । यह एक और उत्कृष्ट युगल गीत है – जो दो एकल गीतों को मिलाकर बना है-क्योंकि प्राण एवं रेशमा भौतिक रूप से अलग हैं लेकिन मन से एक साथ हैं! प्राण एवं रेशमा इस गीत में अपने भाव अलग-अलग व्यक्त करते हैं लेकिन यह बात आसानी से नोट की जा सकती है कि लता एवं मुकेश ने इस गीत की कोई भी पंक्ति एक साथ नहीं गायी है। बेशक ‘वेव्ज़ ओफ दानूब’ इंटरल्यूड्स का प्रमुख हिस्सा है।

गोपाल, प्राण को मूड बदलने और ताज़ी हवा खिलाने खींचकर शहर से बाहर ले जाता है। वे एक जगह रुकते हैं जहां किसी की शादी हो रही है। दु:खी प्राण, गोपाल से कहता है कि वह उसे कहीं भी ले जाए, सिवाय ऐसी ज़गह के जहां किसी की शादी हो रही हो। इसके बाद यह गीत ‘बिछडे हुए परदेसी...’ अचानक आरम्भ होता है, जिसमें रेशमा अपने कमरे में कैद, दु:खी हालत में दिखाई देती है।

गाना खत्म होते-होते प्राण और गोपाल एक वेश्या के दरवाज़े पर खडे दिखाई देते हैं। गोपल, प्राण को यह कहकर अन्दर धकेलता है कि वह सब कुछ भूल कर मज़ा लूटे। प्राण अन्दर जाकर महिला से हिकारतपूर्वक कहता है, ‘तुम पैसों के बदले प्यार का व्यापार करती हो!’ वह कोई जवाब नहीं देती है लेकिन अचानक उसके बच्चे के रोने की आवाज़ आती है। प्राण हिल उठता है और महसूस करता है कि वह इस कृत्य में अपने बच्चे की खातिर लिप्त है। वह नोटों का एक बण्डल उसके पैरों में रखकर, उसके पैर छोकर बाहर निकल आता है। बाहर जोशपूर्वक चहलकदमी कर रहा गोपाल, प्राण से पूछता है, ‘क्यों! कैसा सौदा रहा?’ प्राण दर्द से एवं व्यंग्यपूर्वक कहता है, ‘वो एक मां है! कोई पैसों के बदले मां का सौदा कैसे कर सकता है?’
प्राण एवं गोपाल वहां से निकल पडते हैं और उस जगह से गुज़रते हैं, जहां भोलू, रेशमा के साथ ज़बरदस्ती शादी रचा रहा है। इस बात से अनजान, मात्र सन्योगवश, गोपाल द्वारा कार वहीं पर एक पेड से टकरा जाती है। भोलू और उसके मित्र घायलों को बचाने के लिए दौड पडते हैं और शादी रुक जाती है। गोपाल ठीक है लेकिन प्राण बेसुध है। भोलू रेशमा को फिर से कमरे में कैद कर देता है और प्राण को भी उसी कमरे में पटक देता है। रेशमा, प्राण को देखकर खुशी से पागल हो उठती है और उसका सर अपनी गोद में ले लेती है। भोलू यह देखकर पागल हो उठता है और बेहोश प्राण को खत्म करने के लिए उठाकर बाहर ले जने लगता है। रेशमा उसे रोकने की पूरी कोशिश करती है लेकिन असफल रहती है। जैसे ही भोलू लेकर प्राण को काटने के लिए कुल्हाडी उठाता है, गोपाल द्वारा बुलाई गई पुलिस उसे पकड लेती है।

प्राण को अस्पताल ले जाया जाता है और वह बच जाता है। जब तक प्राण की तबियत सुधरती है, गोपाल, रेशमा को अपने घर ले जाता है, उसे साज-सिंगार के सामान देकर एक मेम बना देता है। वह उसे साडी पहनना और अंग्रेज़ी बोलना सिखाता है। पछतावे की भावना से ग्रस्त गोपाल, रेशमा से कहता है, ‘तुमने मुझे प्यार का पुजारी बना दिया। पिछले साल की बरसात के दौरान मैंने नीला से झूठे वादे किये थे।‘ प्राण और रेशमा अस्पताल में मिलकर खुशी मनाते हैं।

जब प्राण और रेशमा अस्पताल छोडकर घर पहुंचते हैं तो पहाडी पर खडी नीला प्राण को देखकर उसे गोपाल समझ लेती है। उसे याद आता है कि उसने गोपाल से कहा था, ‘अगर मैंने तुम्हें किसी दूसरी औरत के साथ देख लिया तो मैं कुछ (ज़हर) खा लूंगी।‘ गोपाल, प्राण एवं नीला से कहता है कि वह नीला को लेने जा रहा है। वह नील के घर पहुंचकर दरवाज़ा खटखटाता है तो बाहर नीला की सहेली निकलती है जो बोलती है कि नीला मर चुकी है। गोपाल भौंचक्का खडा रह जाता है।

नेपथ्य में ‘बरसात में हमसे मिले तुम...’ की धुन के साथ प्राण एवं रेशमा अपने घर से बाहर आते हैं। गोपाल नीला की चिता तैयार करता है। जब वह उसका माथा चूमता है तो नेपथ्य में लता गाती है ‘बरसात में हमसे मिले तुम...’ और जब वह चिता को अग्नि देता है तो नेपथ्य में लता गाती है ‘देर ना करना कहीं ये आस टूट जाए...’.

परदे पर काले बादल घिर आते हैं और गाने के अंत के साथ उभरता है - THE END.